शनिवार, दिसंबर 22, 2012

इस गुस्से में है कई आवाजें

खाप पंचायतों से लेकर राष्ट्रवादी संस्कृति पुलिस तक के खिलाफ भी है यह गुस्सा

गैंग-रेप के खिलाफ दिल्ली के राजपथ से लेकर पूरे देश भर में उमड़े गुस्से को आंसूगैस, लाठी और गोली से नहीं दबाया जा सकता है और न दबाने दिया जाना चाहिए. यह गुस्सा और विरोध ही भारतीय लोकतंत्र की जान है. इससे ही इन्साफ मिलेगा. इससे ही समाज-देश बदलेगा और बेहतर राजनीति निकलेगी.  

क्योंकि इस गुस्से में गूंजती इन्साफ की मांग में एक साथ कई आवाजें हैं: न जाने कब से हर दिन, सुबह-शाम कभी घर में, कभी सड़क पर, कभी मुहल्ले में, कभी बस-ट्रेन में, कभी बाजार में अपमानित होती स्त्री की पीड़ा है. इसमें खाप पंचायतों के हत्यारों के खिलाफ गुस्सा है. इसमें वैलेंटाइन डे और पब में जाने पर लड़कियों के कपड़े फाड़ने और उनके साथ मारपीट करनेवाले श्रीराम सेनाओं और बजरंगियों को चुनौती है. इसमें स्त्रियों के “चाल-चलन” को नियंत्रित करने के लिए बर्बरता की हद तक पहुँच जानेवाले धार्मिक ठेकेदारों और ‘संस्कृति पुलिस’ के खिलाफ खुला विद्रोह है.

इसमें कभी दहेज, कभी लड़की पैदा करने, कभी छेड़खानी का विरोध करने और कभी जाति बाहर विवाह करने की जुर्रत करनेवाली स्त्रियों को जिन्दा जलाने, हत्या करने, उनपर तेज़ाब फेंकने और बलात्कार से उनका मनोबल तोड़ने की अंतहीन और बर्बर कोशिशों के खिलाफ खुला प्रतिकार है.
इस गुस्से और इन्साफ की मांग के साथ खड़े और लड़ते नौजवान ही उस पितृ-सत्तात्मक व्यवस्था और उसके दमनात्मक औजारों जैसे पुलिस को बदल सकते हैं. इससे ही संसद बदलेगी, कानून बदलेंगे, पुलिस-कोर्ट बदलेंगे और सबसे बढ़कर यह पितृ-सत्तात्मक व्यवस्था बदलेगी जिसने स्त्रियों को अब तक गुलाम बना रखा है. आइये, इस आवाज़ में आवाज़ मिलाकर इन्साफ की मांग और उसकी गूंज को और तेज करें.

क्योंकि चुप रहने का विकल्प नहीं है...         

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